सदा खुद को ख़ुशी के लिए तरसते देखा है,
किसी अनजान के लिए इन आँखों को बरसते देखा है,
कभी दुसरो को मंजिल दिखाते थे
आज अपनी मंजिल के लिए खुद को भटकते देखा है,
जब भी सोचते है क्या होगा हमारी मोह्हब्बत का अंजाम
तो मेरे दोस्त हमने हमेशा खुद को सूली पे लटकते देखा है ..
किसी अनजान के लिए इन आँखों को बरसते देखा है,
कभी दुसरो को मंजिल दिखाते थे
आज अपनी मंजिल के लिए खुद को भटकते देखा है,
जब भी सोचते है क्या होगा हमारी मोह्हब्बत का अंजाम
तो मेरे दोस्त हमने हमेशा खुद को सूली पे लटकते देखा है ..
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