वो कटी फटी हुई पत्तियां, और दाग़ हल्का हरा हरा!
वो रखा हुआ था किताब में, मुझे याद है वो ज़रा ज़रा|
मुझे शौक़ था के मिलूं तुझे, मुझे खौफ़ भी था कहूंगा क्या!
तेरे सामने से निकल गया, बडा सहमा सहमा डरा डरा|
बडा दोगला है ये शख्स भी, कोइ ऐतबार करे तो क्या
ना तो झूठ बोले कवि कभी, ना कभी कहे वो खरा खरा|
गुलजार
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