सरकती जाये है
रुख से नक़ाब
आहिस्ता आहिस्ता
निकलता आ रहा
है आफ़ताब आहिस्ता
आहिस्ता
जवां होने लगे
जब वो तो
हमसे कर लिया
परदा
हया यकलख़्त आई और
शबाब आहिस्ता आहिस्ता
सवाल\-ए\-वसल
पे उनको उदू
का खौफ़ है
इतना
दबे होंठों से देते
हैं जवाब आहिस्ता
आहिस्ता
हमारे और तुम्हारे
प्यार में बस
फ़र्क है इतना
इधर तो जल्दी\-जल्दी है उधर
आहिस्ता आहिस्ता
शब-ए-फ़ुर्क़त
का जागा हूँ
फ़रिश्तो अब तो
सोने दो
कभी फ़ुर्सत में कर
लेना हिसाब आहिस्ता
आहिस्ता
वो बेदर्दी से सर
काटें अमीर और
मैं कहूँ उनसे
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब
आहिस्ता आहिस्ता
:आमिर मिनाई
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